Monday 9 December 2013

भारत को चाहिए जादूगर और साधु / हरिशंकर परसाई

हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को मैं सोचता हूं कि साल-भर में कितने बढ़े। न सोचूं तो भी काम चलेगा- बल्कि ज्यादा आराम से चलेगा।
 सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं।
यह 26 जनवरी 1972 फिर आ गया। यह गणतंत्र दिवस है, मगर ‘गण’ टूट रहे हैं। हर गणतंत्र दिवस ‘गण’ के टूटने या नये ‘गण’ 
बनने के आंदोलन के साथ आता है। इस बार आंध्र और तेलंगाना हैं। अगले साल इसी पावन दिवस पर कोई और ‘गण’ संकट आयेगा।

इस पूरे साल में मैंने दो चीजें देखीं। दो तरह के लोग बढ़े- जादूगर और साधु बढ़े। मेरा अंदाज था, सामान्य आदमी के जीवन के सुभीते 
बढ़ेंगे- मगर नहीं। बढ़े तो जादूगर और साधु-योगी। कभी-कभी सोचता हूं कि क्या ये जादूगर और साधु ‘गरीबी हटाओ’ प्रोग्राम के
 अंतर्गत ही आ रहे हैं! क्या इसमें कोई योजना है?

रोज अखबार उठाकर देखता हूं। दो खबरें सामने आती हैं- कोई नया जादूगर और कोई नया साधु पैदा हो गया है।
 उसका विज्ञापन छपता है। जादूगर आंखों पर पट्टी बांधकर स्कूटर चलाता है और ‘गरीबी हटाओ’ वाली जनता कामधाम छोड़कर,
 तीन-चार घंटे आंखों पर पट्टी बांधे जादू्गर को देखती हजारों की संख्या में सड़क के दोनों तरफ खड़ी रहती है। ये छोटे जादूगर हैं। 
इस देश में बड़े बड़े जादूगर हैं, जो छब्बीस सालों से आंखों पर पट्टी बांधे हैं। जब वे देखते हैं कि जनता अकुला रही है और कुछ करने 
पर उतारू है, तो वे फौरन जादू का खेल दिखाने लगते हैं। जनता देखती है, ताली पीटती है। मैं पूछता हूं- जादूगर साहब, आंखों पर 
पट्टी बांधे राजनैतिक स्कूटर पर किधर जा रहे हो? किस दिशा को जा रहे हो- समाजवाद? खुशहाली? गरीबी हटाओ? कौन सा 
गन्तव्य है? वे कहते हैं- गन्तव्य से क्या मतलब? जनता आंखों पर पट्टी बांधे जादूगर का खेल देखना चाहती है। हम दिखा रहे हैं। 
जनता को और क्या चाहिए?

जनता को सचमुच कुछ नहीं चाहिए। उसे जादू के खेल चाहिए। मुझे लगता है, ये दो छोटे-छोटे जादूगर रोज खेल दिखा रहे हैं,
 इन्होंने प्रेरणा इस देश के राजनेताओं से ग्रहण की होगी। जो छब्बीस सालों से जनता को जादू के खेल दिखाकर खुश रखे हैं, 
उन्हें तीन-चार घंटे खुश रखना क्या कठिन है। इसलिए अखबार में रोज फोटो देखता हूं, किसी शहर में नये विकसित किसी जादूगर की।

सोचता हूं, जिस देश में एकदम से इतने जादूगर पैदा हो जाएं, उस जनता की अंदरूनी हालत क्या है? वह क्यों जादू से इतनी प्रभावित है?
 वह क्यों चमत्कार पर इतनी मुग्ध है? वह जो राशन की दुकान पर लाइन लगाती है और राशन नहीं मिलता, वह लाइन छोड़कर जादू 
के खेल देखने क्यों खड़ी रहती है?

मुझे लगता है, छब्बीस सालों में देश की जनता की मानसिकता ऐसी बना दी गयी है कि जादू देखो और ताली पीटो। 
चमत्कार देखो और खुश रहो।

बाकी काम हम पर छोड़ो।

भारत-पाक युद्ध ऐसा ही एक जादू था। जरा बड़े स्केल का जादू था, पर था जादू ही। जनता अभी तक ताली पीट रही है।

उधर राशन की दुकान पर लाइन बढ़ती जा रही है।

देशभक्त मुझे माफ करें। पर मेरा अंदाज है, जल्दी ही एक शिमला शिखर-वार्ता और होगी। 
भुट्टो कहेंगे- पाकिस्तान में मेरी हालत खस्ता। अलग-अलग राज्य बनना चाह रहे हैं। गरीबी बढ़ रही है। लोग भूखे मर रहे हैं।

हमारी प्रधानमंत्री कहेंगी- इधर भी गरीबी हट नहीं रही। कीमतें बढ़ती जा रही हैं। जनता में बड़ी बेचैनी है। बेकारी बढ़ती जा रही है।

तब दोनों तय करेंगे- क्यों न पंद्रह दिनों का एक और जादू हो जाए। चार-पांच साल दोनों देशों की जनता इस जादू के असर में रहेगी।
(देशभक्त माफ करें- मगर जरा सोंचें)

जब मैं इन शहरों के इन छोटे जादूगरों के करतब देखता हूं तो कहता हूं- बच्चों, तुमने बड़े जादू नहीं देखे। 
छोटे देखे हैं तो छोटे जादू ही सीखे हो।

दूसरा कमाल इस देश में साधु है। अगर जादू से नहीं मानते और राशन की दुकान पर लाइन लगातार बढ़ रही है, तो लो, साधु लो।

जैसे जादूगरों की बाढ़ आयी है, वैसे ही साधुओं की बाढ़ आयी है। इन दोनों में कोई संबंध जरूर है।

साधु कहता है- शरीर मिथ्या है। आत्मा को जगाओ। उसे विश्वात्मा से मिलाओ। अपने को भूलो। 
अपने सच्चे स्वरूप को पहचानो। तुम सत्-चित्-आनन्द हो।

आनंद ही ब्रह्म है। राशन ब्रह्म नहीं। जिसने ‘अन्नं ब्रह्म’ कहा था, वह झूठा था। नौसिखिया था। 
अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि अन्न नहीं ‘आनन्द’ ही ब्रह्म है।

पर भरे पेट और खाली पेट का आनन्द क्या एक सा है? नहीं है तो ब्रह्म एक नहीं अनेक हुए।
यह शास्त्रोक्त भी है- ‘एको ब्रह्म बहुस्याम।’ ब्रह्म एक है पर वह कई हो जाता है। एक ब्रह्म ठाठ से रहता है,
दूसरा राशन की दुकान में लाइन से खड़ा रहता है, तीसरा रेलवे के पुल के नीचे सोता है।

सब ब्रह्म ही ब्रह्म है।

शक्कर में पानी डालकर जो उसे वजनदार बनाकर बेचता है, वह भी ब्रह्म है और जो उसे मजबूरी में खरीदता है, वह भी ब्रह्म है।

ब्रह्म, ब्रह्म को धोखा दे रहा है।

साधु का यही कर्म है कि मनुष्य को ब्रह्म की तरफ ले जाय और पैसे इकट्ठे करे; क्योंकि ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या।’

26 जनवरी आते आते मैं यही सोच रहा हूं कि ‘हटाओ गरीबी’ के नारे को, हटाओ महंगाई को, हटाओ बेकारी को, 
हटाओ भुखमरी को क्या हुआ?

बस, दो तरह के लोग बहुतायत से पैदा करें- जादूगर और साधु।

ये इस देश की जनता को कई शताब्दी तक प्रसन्न रखेंगे और ईश्वर के पास पहुचा देंगे।

भारत-भाग्य विधाता। हममें वह क्षमता दे कि हम तरह-तरह के जादूगर और साधु इस देश में लगातार बढ़ाते जायें।

हमें इससे क्या मतलब कि ‘तर्क की धारा सूखे मरूस्थल की रेत में न छिपे’(रवींद्रनाथ) वह तो छिप गयी।
 इसलिए जन-गण-मन अधिनायक! बस हमें जादूगर और पेशेवर साधु चाहिए। तभी तुम्हारा यह सपना सच होगा कि
 हे परमपिता, उस स्वर्ग में मेरा यह देश जाग्रत हो।(जिसमें जादू्गर और साधु जनता को खुश रखें)।

यह हो रहा है, परमपिता की कृपा से!

A trip of Mahabalipuram, Tamil Nadu

Mahabalipuram is a historical city of pallavas and it is main port of ancient Tamil nadu. Nowday Mahabalipuram is a small city under kanchipuram district area and it is situated in chennai-pondicherry highway. There is two highway one is OMR road and another is ECR road. Both are in well furnish road. here some photo this is show what is mahabalipuram........



these photo are just a photo.the actual beauty is see via eye.

Friday 6 December 2013

The Aviator movie

1920 के दशक से मध्य 1940 के दशक तक, दिग्गज निर्देशक और एविएटर हॉवर्ड ह्यूजेस 'कैरियर के प्रारंभिक वर्षों का चित्रण एक बायोपिक.लियोनार्डो डिकैप्रियो एक बार फिर, एक कलाकार और एक फिल्म ले जाने के लिए अपनी क्षमता के रूप में उनकी गहराई से पता चलता है. उन्होंने गोल्डन ग्लोब के हकदार हैं, और एक शानदार अभिनेता के रूप में उनकी वजह से. हॉवर्ड ह्यूजेस, आदमी, एक रहस्य बनी हुई है और उसके जुनूनी बाध्यकारी विकार का चित्रण अपने भीतर नरक में एक शक्तिशाली दृश्य था. शुरुआत दृश्य अपने विशेषाधिकार प्राप्त और अंधेरी दुनिया में एक यात्रा के लिए गति सेट. एविएटर प्रतिभा की torments और उपहार दिखाया. सभी ने अद्भुत काम शामिल! अलमारी, संगीत, विशेष प्रभाव, दिशा, अभिनय ... सभी पुरस्कार जीतने योगदान. मैं इस फिल्म की शक्ति को दर्शाता है जो फिल्म में ले जाया गया और परेशान, छोड़ दिया है




neo noir movie

Memento the amazing movie.(Gajni movie is copy of this movie)

A man, suffering from short-term memory loss, uses notes and tattoos to hunt for the man he thinks killed his wife.

Memento chronicles two separate stories of Leonard, an ex-insurance investigator who can no longer build new memories, as he attempts to find the murderer of his wife, which is the last thing he remembers. One story line moves forward in time while the other tells the story backwards revealing more each time

think


 In a moment of decision,

the best thing you can do is the right thing to do.

The worst thing you can do is nothing.


--- Theodore Roosevelt




 In a moment of decision,

the best thing you can do is the right thing to do.

The worst thing you can do is nothing.


--- Theodore Roosevelt



Sunday 24 February 2013

मै एक इन्सान हूँ , एक  इंसान  जिसे  भूख लगती  है , जिसे याद आती  है  वक़्त के  सिमटने का  जैसे कोई
रेत मुठी से फिसली जा  रही है और धुल उराती उन बचपन की गलियों की जहाँ मेरी और सिर्फ मेरी ही बातें
थी .............क्या मैं समझ पा रहा हु और मैं बिखरता जा रहा हूँ